समर्पित
उनको
जिनके माथे पर पसीना है, आँखों में पानी है -
जिन्दगी जिनकी कविता है , मौत एक कहानी है ।
जिन्दगी जिनकी कविता है , मौत एक कहानी है ।
अनुरोध
मैंने
साहित्य कि दुरूहता से परे हटकर आज के आम आदमी कि घुटन एवं पीड़ा को सरल
शब्दों में अभिव्यक्त करने की कोशिश की है | छन्द मुक्त रचनाओं में भी
गद्द और पद्द की दुरी को निबाहने एवं अभिव्यक्ति को लय प्रदान करने हेतु
तुकों कि छांव तलाशनी पड़ीं है । पाठकगण यदि इस प्रयास को कवित्व माने तो
मैं अपने को कृतकृत्य मानूंगा । आपकी मान्यताओं का हार्दिक स्वागत है ।
आशा है संग्रह आपको रुचिकर लगेगा । आपका वांछित स्नेह मेरी कलम को भविष्य में सम्बल प्रदान करेगा ।
बसंत पंचमी -१ ९ ७ ८
परिचय
छत्तीसगढ़ के चावल से बना पोहा हूँ
कबीर की साखी हूँ तुलसी का दोहा हूँ
सीधा हूँ सरल हूँ पानी जैसा तरल हूँ
आग से पिघला हुआ भिलाई का लोहा हूँ
कबीर की साखी हूँ तुलसी का दोहा हूँ
सीधा हूँ सरल हूँ पानी जैसा तरल हूँ
आग से पिघला हुआ भिलाई का लोहा हूँ
बसंत देशमुख
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बसंत लोहे का कवि है । उसकी कविताएं उन लोगों का पसीना पोंछना चाहती हैं जो लोहे की रोटियाँ खाते हैं और चिमनियों की तरह साँसें उगलने को मजबूर हैं । हाँ किसी को खेद हो सकता है कि वह विदेशमुख नहीं है । आज जरूरत है कोई कवि तो हो पर भिलाई का मजदूर हो बहते इस्पात को देख कर किसी की आँखें जलें ।
-- पवन दीवान
आज की अधिकांश कविता जहां डॉक्टरी नुस्खे की तरह नीरस हुआ करती है वहाँ छत्तीसगढ़ के उदीयमान कवि श्री बसंत देशमुख का काव्य-स्वर लोक-संदर्भों से मुखरित एवं शिल्पित संस्कारों का आग्रही लगता है । उसमें सर्वथा आघात कारिणी क्षमता है । कवि केवल अनास्था, केवल कुंठा अथवा केवल अशिल्प को ही काव्य का पर्याय नहीं मानता बल्कि कविता उसके लिये आत्म संघर्ष का ही दूसरा नाम है ।
अनेक संभावनाओं से भरपूर कवि बसंत देशमुख की कविता इसलिये भी मन को छूती है क्योंकि वह खुलापन चाहती है और हमारे प्रतिदिन के जीवन से जुड़ी हुई है ।
-- नारायण लाल परमार
मौन अकारण मुखर नहीं होता । बसंत जब केसरिया बना पहनता है, तब हर वाद्द उन्मादी हो जाता है । बसंत देशमुख का कवि भी सड़क पर कूदता नारा नहीं है वरन् गालियों मे मुनादी करके बागी होने वाला खून है, क्योंकि वह नियमित रूप से संकल्पों की गीता पढ़ता है । कवि ने यथार्थ के धरातल पर खड़े होकर सारी बातें की हैं । आम आदमी का परिवेश उसका परिवेश है और समाज का दर्द उसका दर्द । काव्य निश्चित रूप से समर्थन के शब्दों का कालपात्र होता है लेकिन उसमें झूठा इतिहास नहीं, जीवित वर्तमान अंकित होता है । पिछली दशाब्दी मे छत्तीसगढ़ के जिन तरुण कवियों के स्वर उभर कर सामने आये उनमे बसंत देशमुख का नाम अग्र पंक्ति मे है और इसका प्रमाण है मुखरित मौन ।
-- दानेश्वर शर्मा
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सम्मतियाँ
बसंत लोहे का कवि है । उसकी कविताएं उन लोगों का पसीना पोंछना चाहती हैं जो लोहे की रोटियाँ खाते हैं और चिमनियों की तरह साँसें उगलने को मजबूर हैं । हाँ किसी को खेद हो सकता है कि वह विदेशमुख नहीं है । आज जरूरत है कोई कवि तो हो पर भिलाई का मजदूर हो बहते इस्पात को देख कर किसी की आँखें जलें ।
-- पवन दीवान
मुखरित मौन - काव्य संग्रह विमोचन समारोह - १५ -४ -१९७८ दीक्षित लाज दुर्ग |
आज की अधिकांश कविता जहां डॉक्टरी नुस्खे की तरह नीरस हुआ करती है वहाँ छत्तीसगढ़ के उदीयमान कवि श्री बसंत देशमुख का काव्य-स्वर लोक-संदर्भों से मुखरित एवं शिल्पित संस्कारों का आग्रही लगता है । उसमें सर्वथा आघात कारिणी क्षमता है । कवि केवल अनास्था, केवल कुंठा अथवा केवल अशिल्प को ही काव्य का पर्याय नहीं मानता बल्कि कविता उसके लिये आत्म संघर्ष का ही दूसरा नाम है ।
अनेक संभावनाओं से भरपूर कवि बसंत देशमुख की कविता इसलिये भी मन को छूती है क्योंकि वह खुलापन चाहती है और हमारे प्रतिदिन के जीवन से जुड़ी हुई है ।
-- नारायण लाल परमार
नारायण लाल परमार - मुखरित मौन - काव्य संग्रह विमोचन समारोह - १५/४/१९७८ दीक्षित लाज दुर्ग |
मौन अकारण मुखर नहीं होता । बसंत जब केसरिया बना पहनता है, तब हर वाद्द उन्मादी हो जाता है । बसंत देशमुख का कवि भी सड़क पर कूदता नारा नहीं है वरन् गालियों मे मुनादी करके बागी होने वाला खून है, क्योंकि वह नियमित रूप से संकल्पों की गीता पढ़ता है । कवि ने यथार्थ के धरातल पर खड़े होकर सारी बातें की हैं । आम आदमी का परिवेश उसका परिवेश है और समाज का दर्द उसका दर्द । काव्य निश्चित रूप से समर्थन के शब्दों का कालपात्र होता है लेकिन उसमें झूठा इतिहास नहीं, जीवित वर्तमान अंकित होता है । पिछली दशाब्दी मे छत्तीसगढ़ के जिन तरुण कवियों के स्वर उभर कर सामने आये उनमे बसंत देशमुख का नाम अग्र पंक्ति मे है और इसका प्रमाण है मुखरित मौन ।
-- दानेश्वर शर्मा
दाऊ रामचंद्र देशमुख - मुखरित मौन - काव्य संग्रह विमोचन समारोह १५ -४ -१९७८ दिक्षीत लाज दुर्ग |